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Friday

केदार जी की एक कविता

केदारनाथ सिंह की यह कविता पहली बार तब पढ़ी जब मां हिन्दी में एम०ऐ० कर रही थी। मैं कुछ 11-12 का रहा हूंगा। तब से जितनी बार इसे पढ़ा, नया पाया। ख़ासकर चेन्नई में कई महीनों के एकांत के दौरान। बहुत मुमकिन है आपने इसे पहले पढ़ा हो। फिर भी पोस्ट कर रहा हूं।

उस शहर में जो एक मौलसिरी का पेड़ है


उस शहर में जो एक मौलसिरी का पेड़ है
कहीं उसी के आसपास
रहती थी एक स्त्री
जिसे मैं प्यार करता हूं
उस शहर में रहते थे और भी बहुत-से लोग
जो मई की इस धूप में
मुझे उसी तरह याद हैं
जैसे याद है वह मौलसिरी का पेड़
पर अब वह शहर कहां है
तुम पूछोगे तो मैं कुछ नहीं बता पाऊंगा
वहां तक ले जाती है कौन सी सड़क
मुझे कुछ भी याद नहीं
मैं दावे के साथ ये भी नहीं कह सकता
कि वह स्त्री
जिसे मैं अब भी - अब भी प्यार करता हूं
कभी किसी शहर में रहती भी थी
या नहीं
पर इतना तय है
मैं उसे प्यार करता हूं

मैं इस दुनिया को
एक पुरुष की सारी वासना के साथ
इसलिए प्यार करता हूं
कि मैं प्यार करता हूं
एक स्त्री को।


केदारनाथ सिंह