Thursday
मुनीर बशीर के लिए एक कविता
रविशंकर हमेशा से मुझे संगीत जगत में एक aberration लगे। उनके जाने के बाद बहुत साल पहले लिखी अपनी ये कविता याद आई। इसमें उनका ज़िक्र है।
-----------
मुनीर बशीर के लिए एक कविता
सारिका के पुराने अंक के
मुखपृष्ठ पर जब देखा तुम्हारा चेहरा
बहुत साल बीते।
तब कविता थी ज़िंदगी से नदारद
सीख रहा था शायद
राग भूपाली के आरोह-अवरोह -
नहीं जानता था बिल्कुल
सितार और ऊद के मध्य के अंतर।
शायद सुन पाता कभी तुम्हारे मक़ाम
अगर धरती होती चोकौर -
रविशंकर के लक़-दक़ चेहरे के साथ
दिख जाते तुम भी टी.वी. पर
एक-आध बार।
कहां, मुनीर?
धरती के किस कोने में निर्वासित
या शायद इराक़ में ही कहीं बजती ऊद -
भव्य बमवर्षकों की गर्जना तले
शायद बसरा में सहमते हों सुर
शायद जार्डन में मिल जाए कहीं
या जा पहुंची हो वो भी अमरीका।
दिन-रात इंटरनेट पर
पत्रिकाओं में, चैटरूमों में
नहीं मिलते मुनीर!
(मुनीर बशीर - सन् सत्तानवे में इंतक़ाल)
किसी अरबी अख़बार में
छ्पा होगा तुम्हारा मर्सिया -
अफ़सोस मैं अरबी नहीं जानता।
और आश्चर्य
ऊद भी ग़ायब!
++++
समर्थ वाशिष्ठ
(मुनीर बशीर इराक़ के मशहूर ऊद-वादक थे। अरबी संगीत में उनका योगदान अभूतपूर्व रहा।)
Labels:
Munir Bashir,
music,
Ravi Shankar
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment