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केदार जी की एक कविता

केदारनाथ सिंह की यह कविता पहली बार तब पढ़ी जब मां हिन्दी में एम०ऐ० कर रही थी। मैं कुछ 11-12 का रहा हूंगा। तब से जितनी बार इसे पढ़ा, नया पाया। ख़ासकर चेन्नई में कई महीनों के एकांत के दौरान। बहुत मुमकिन है आपने इसे पहले पढ़ा हो। फिर भी पोस्ट कर रहा हूं।

उस शहर में जो एक मौलसिरी का पेड़ है


उस शहर में जो एक मौलसिरी का पेड़ है
कहीं उसी के आसपास
रहती थी एक स्त्री
जिसे मैं प्यार करता हूं
उस शहर में रहते थे और भी बहुत-से लोग
जो मई की इस धूप में
मुझे उसी तरह याद हैं
जैसे याद है वह मौलसिरी का पेड़
पर अब वह शहर कहां है
तुम पूछोगे तो मैं कुछ नहीं बता पाऊंगा
वहां तक ले जाती है कौन सी सड़क
मुझे कुछ भी याद नहीं
मैं दावे के साथ ये भी नहीं कह सकता
कि वह स्त्री
जिसे मैं अब भी - अब भी प्यार करता हूं
कभी किसी शहर में रहती भी थी
या नहीं
पर इतना तय है
मैं उसे प्यार करता हूं

मैं इस दुनिया को
एक पुरुष की सारी वासना के साथ
इसलिए प्यार करता हूं
कि मैं प्यार करता हूं
एक स्त्री को।


केदारनाथ सिंह

3 comments:

vijaymaudgill said...

मैं इस दुनिया को
एक पुरुष की सारी वासना के साथ
इसलिए प्यार करता हूं
कि मैं प्यार करता हूं
एक स्त्री को।
सामर्थ जी बहुत गहरी बात है यह। धन्यवाद इतनी अच्छी रचना पढ़ाने के लिए। आभारी हूं आपका।

समर्थ वाशिष्ठ / Samartha Vashishtha said...

dhanyavaad, vijay bhai.

seema gupta said...

" very touching one"
Regards