चेन्नई से नोएडा आए आज दो महीने हो गए। जितना प्यार हमें उस शहर ने दिया, अविस्मरणीय है। अलग परिवेश और अपनी ही तरह से अनूठा भी। जीवन में मसरूफ़ सीधे-सादे लोग जिनसे हमने अंग्रेज़ी में ही बहुत कुछ बांटा। आज भी अगर जाएं तो कुछ घर ऐसे कि जिनमें बेधड़क रात को रुक पाएं। और क्या दे सकता है कोई शहर सिर्फ़ डेढ़ साल में?
बहरहाल, बहुत कुछ बताने को है, पर धीरे-धीरे। आज के लिए के० जे० येशुदास की आवाज़ में स्वामी अयप्पा के लिए ये आरती सुनिये। जब भी इसे सुनता हूं, दफ़्तर की आपा-धापी में या किसी रविवार को, बहुत शांति मिलती है। भाषा मलयालम है, फिर भी 90% संस्कृत ही। सो समझ आसानी से आ जाएगी।
अब दो शब्द स्वामी अयप्पा के बारे में। दक्षिण में हमे हिंदू धर्म का स्वरूप काफ़ी अलग मिला। अयप्पा वहां पूज्य मुख्य देवताओं में से एक हैं। उनके जन्म की कहानी भी विचित्र है। उन्हें शिव और विष्णु के मोहिनी अवतार का पुत्र माना जाता है। अयप्पा का एक बड़ा मंदिर केरल में शबरीमला में स्थित है। कहते हैं मक्का में हज से कम सबसे ज़्यादा लोग शबरीमला ही तीर्थ-यात्रा के लिए जाते हैं। साल में तकरीबन 4-5 करोड़ लोग।
शिव के बड़े बेटे कार्तिक के मंदिर भी दक्षिण में बहुत हैं। उन्हें कई नामों में मुरुगन, सर्वनन और थनिगवेल तीन हैं। जब विश्व परिक्रमा में गणेश को विजयी घोषित किया गया तो कार्तिक रूठ कर दक्षिण आ गए थे।
यहां ये जानना भी दिलचस्प है कि येशुदास (कट्टसरी जॉसेफ़ येशुदास) धर्म से ईसाई हैं। उनकी मख़मली आवाज़ दुनिया भर में पसंद की जाती है। हिंदी में भी सदमा फ़िल्म का उनका गाना सुरमई अखिंयों में आज तक किसी को भूला नहीं है। कई कट्टर दक्षिण भारतीय मंदिरों में उनका प्रवेश गैर-हिंदु होने के कारण वर्जित है। हालांकि यही मंदिर सुबह-शाम उनके गाए भजन और आरतियां बजाते हैं।
यूट्यूब पर पूरी आरती यहां सुनें। डाउनलोड करना चाहें तो MP3 मैंने यहां डाली है। 10 MB से ऊपर है, सो अच्छा होगा अगर लिंक को राइट क्लिक कर Save Target As कर लें।
5 comments:
बहुत धन्यवाद! येसुदास के मन्दिर प्रवेश की मनादी के कारन उनके गुरु चेम्बाई ने ब्राह्मण होने के बावजूद अपने प्रिय शिष्य के बिना उस मन्दिर में घुसने से इनकार कर दिया था जिसमें वे हमेशा गायन करते थे.
आभार सुनवाने का लिंक देने के लिए.
dhanyavaad, smart indian aur udan tashtari ji.
मंदिरों में ग़ैर-हिन्दुओं का घुसना माना है | परन्तु आवाज़ के तो साये नहीं होते - तभी आज भी हर रोज़ काशी विश्वनाथ जी की नींद खुलती है बिस्मिल्लाह खाँ के शहनाई से
बिल्कुल अनंदिता। सौ फ़ीसदी सही!
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