Saturday

शिमला 3

अर्धचक्र

एक वानर बैठा बान पर
करता आश्चर्य

किसने रंग दिया आकाश
और चिपका दिय़ा
जाखू शिखर पर?


समर्थ वाशिष्ठ

'वर्तमान साहित्य', 2001
अंग्रेज़ी में: Gyration

Tuesday

शिमला 2

साथी

एक चीड़ थामे है
अपने इकलौते शंकु को
सुन्न हाथों में
और मैं खड़ा हूं नीचे
उसके गिरने की ताक़ में।

बैठी है शंकु पर एक किरण
क्या वह भी गिरेगी?


समर्थ वाशिष्ठ

'वर्तमान साहित्य', 2001
अंग्रेज़ी में: The Escort

Monday

शिमला 1

जयसूर्य

उनींदा सूर्य
छिटककर जड़ता
चढ़ता है
अलसाए शहर पर।
छिन्न-विछिन्न हिमकणों की सेना
पुनर्जीवन पा
उड़ाती है प्रात:-किरणों की
धज्जियां
कौन कहता है
केवल ईश्वर ही
सर्वव्याप्त है?


समर्थ वाशिष्ठ
'वर्तमान साहित्य', 2001

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शिमला के ऊपर बिंब कविताओं की यह श्रृंखला 2001 में लिखी थी। आज भी इसे अपने ठीक काम में गिनता हूं। वैसे अपने काम को अच्छा या बुरा कहना कोई मायने नहीं रखता। पाठक ही किसी रचना की सार्थकता की कसौटी होते हैं।

शिमला में मेरा लगभग सारा होश-वाला बचपन बीता। आज भी वो शहर घर जैसा लगता है। ये कविताएं हालांकि शिमला छोड़ने के छ:-सात साल बाद लिखी गईं। कैसी बन पड़ी हैं ज़रूर बताएं।