Tuesday

शिमला 2

साथी

एक चीड़ थामे है
अपने इकलौते शंकु को
सुन्न हाथों में
और मैं खड़ा हूं नीचे
उसके गिरने की ताक़ में।

बैठी है शंकु पर एक किरण
क्या वह भी गिरेगी?


समर्थ वाशिष्ठ

'वर्तमान साहित्य', 2001
अंग्रेज़ी में: The Escort

4 comments:

ghughutibasuti said...

सुंदर रचना !
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर.

समर्थ वाशिष्ठ / Samartha Vashishtha said...

धन्यवाद, mired mirage और उड़न तश्तरी जी।

namkeen said...

वो किरण शायद उठ कर फिर चली भी जायें मगर वो शंकू वंही रहेगा....
shanku ke baare mein bhee sochiye
sachmuch bahut khub..